Ayurvedic Chikitsa Tips in Hindi: आइये जानें क्या है सच्ची एवं आदर्श चिकित्सा:
Ayurvedic Chikitsa Tips in Hindi: आज की आपाधापी और भागदौड़ भरी ज़िंदगी में प्रदूषित वातवरण, प्रदूषित भोजन, प्रदूषित जल के कारण आम आदमी तरह तरह की बीमारियों से घिरा रहता है और उनके इलाज में लाखों रुपये खर्च करने के बावजूद बीमारी से निजात नहीं हासिल कर पाता। इसका एक मात्र कारण यह है कि वह नहीं जानता कि सच्ची और आदर्श चिकित्सा (Ayurvedic Chikitsa Tips in Hindi)है क्या?
वास्तव में, चिकित्सा शब्द की निष्पत्ति संस्कृत भाषा के ‘कित् रोगपनयने’ धातु से रोग निवृत्ति अर्थ में हुई है, इससे स्पष्ट होता है कि चिकित्सा का अर्थ रोगों की निवृत्ति अर्थात् रोग से मुक्ति प्रदान करना है। अब व्यक्ति सच्ची और आदर्श चिकित्सा के बारे में जानता ही नहीं, इसलिए, उसे चिकित्सा के नाम पर जो कुछ मिलता है उसी कि ओर चल देता है, चाहे उसे रोग से मुक्ति मिले या नहीं।
यदि अधिक पीछे न भी जाएँ तो आज से लगभग 150 वर्ष पूर्व, हमारे देश में विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा आयुर्वेद का ही प्रचलन था। उस समय न तो इतने रोग थे, और न ही चिकित्सा ही इतनी महंगी थी। आयुर्वेद में वर्णित स्वास्थ्य सिद्धांतों का पालन करने से लोग प्रायः बीमार पड़ते ही नहीं थे, यदि बीमार होते भी थे तो अपने आसपास उगने वाली साधारण वनस्पतियों का प्रयोग करके शीघ्र ही स्वस्थ हो जाते थे। गंभीर रोगों के इलाज के लिए वैद्य होते थे जो केवल दवा की कीमत लेकर रोगी को स्वस्थ कर देते थे। इससे स्पष्ट होता है कि सच्ची और आदर्श चिकित्सा आयुर्वेद ही है।
आयुर्वेद को सच्ची आदर्श चिकित्सा मानने के पूर्व, किसी भी अन्य विज्ञान की भांति, इसके मौलिक सिद्धांतों को समझना आवश्यक है। औषधि और चिकित्सक के विषय में चरक संहिता के सूत्र स्थान में आचार्य चरक लिखते हैं कि:
तदेवयुक्त भैषज्यं यदाsरोग्याय कल्पते।
स चैव भिषजाम श्रेष्ठो रोगेभ्य: यो प्रमोचयते॥ (च.सू। 1/135)॥
अर्थात, औषधि वह है जो रोग को दूर कर आरोग्यता प्रदान करे तथा दूसरी कोई व्याधि उत्पन्न न करे और चिकित्सक वही श्रेष्ठ है जो रोगी को रोग से सर्वथा मुक्त कर स्वास्थ्य लाभ दे सके। आयुर्वेद में चिकित्सा(Ayurvedic Chikitsa Tips in Hindi) के स्वरूप का वर्णन करते हुए आचार्य चरक आगे लिखते हैं:
याभि: क्रियाभि: जायन्ते शरीरे धातव: समा:।
या चिकित्सा विकाराणम् तत्कर्म भिषजाम् मतम्॥(च.सू। 1/134)॥
अर्थात, जिन क्रियाओं के द्वारा शरीर में धातुएं (वात, पित्त, कफ, रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र, मल, मूत्र, स्वेद आदि) समान रूप में हो जाएँ वही विकारों की चिकित्सा है और वही चिकित्सक(Ayurvedic Chikitsa Tips in Hindi) का कर्म है।
चिकित्सा की उपरोक्त व्याख्या से स्पष्ट है कि जिस प्रक्रिया के द्वारा उत्पन्न हुई व्याधि का शमन होता और विषम दोष पुनः अपनी प्राकृतिक स्थिति में लौट जाते हैं, वही आदर्श चिकित्सा मानी जाती है। आदर्श चिकित्सा से व्याधि और दोषों का शमन तो होता ही है, साथ-साथ शरीर की रस, रक्त आदि धातुएं भी पुष्ट होती हैं और रोग के प्रभाव से उत्पन्न धातुक्षय एवं दुर्बलता का प्रतीकार कर, स्वास्थ्य का अनुवर्तन भी होता है। जैसा कि कहा गया है:
प्रयोग: समयेद् व्याधिमेकं योsन्यमुदीरयेत्।
नाsसौ विशुद्ध: शुद्धस्तु शामयेद्यो न कोपयेत्॥
यदि किसी चिकित्सा से एक व्याधि का तो शमन हो परंतु दूसरी व्याधि उत्पन्न हो जाए और शरीर अन्य विकारों के लिए उर्वर क्षेत्र बन जाये तो ऐसी चिकित्सा किस काम की? अतः उपरोक्त व्याख्या से स्पष्ट है कि आदर्श चिकित्सा में निम्नांकित गुण होना आवश्यक हैं:
- दोषों (वात, पित्त, कफ) की विषमता को साम्यावस्था में लाकर व्याधि का उन्मूलन करना।
- उत्पन्न विकारों के शमन के साथ साथ, शारीरिक धातुओं का पुष्ट होना तथा अन्य विकारों का उत्पन्न न होना।
- दोष और व्याधि के दुष्प्रभाव से उत्पन्न धातुक्षय और दुर्बलता का प्रतिकार करते हुये स्वास्थ्य का अनुवर्तन (recovery) होना।
आयुर्वेद चिकित्सा को आदर्श चिकित्सा मानने का प्रमुख कारण इसमें उपरोक्त सभी गुणों की उपस्थिति है क्योंकि आयुर्वेद पूर्णत: निरापद (बिना किसी साइड एफेक्ट वाली) तो है ही साथ ही, इसके उपचार के पश्चात, न तो वह रोग जिसका उपचार किया गया है वह पुनः उत्पन्न होता है न ही इसके पार्श्व प्रभाव के कारण किसी अन्य रोग की उत्पत्ति होती है। चूंकि आयुर्वेद चिकित्सा रोग का शोधन, शमन एवं उन्मूलन करती है और रोगी के शरीर का पोषण करती है इसलिए हानि करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता।
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Ayurvedic Chikitsa Tips in Hindi
आयुर्वेद चिकित्सा में उपरोक्त गुणों की उपस्थिति तो होती ही है, साथ ही, आयुर्वेद चिकित्सा(Ayurvedic Chikitsa Tips in Hindi) की विशेषता इसकी चिकित्सा व्यवस्था भी है। आयुर्वेद में हेतु व्याधि विपरीत चिकित्सा (रोग के कारणों की चिकित्सा) और व्याधि प्रत्यानीक या व्याधि विपरीत चिकित्सा (रोग के लक्षणों की चिकित्सा) का आवश्यकतानुसार प्रयोग किया जाता है। चूंकि इसमें हेतु व्याधि विपरीत चिकित्सा को व्याधि प्रत्यानीक से श्रेष्ठ बताया गया है
इसीलिए, आयुर्वेद चिकित्सा से रोगी स्वस्थ होकर पूर्णत: स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करता है। आयुर्वेद चिकित्सा में तीक्ष्ण औषधियों से रोग के लक्षणों को दबाने के बजाय उसको जड़ से नष्ट किया जाता है जिससे वह रोग पुनः उत्पन्न नहीं हो पाता। सरल भाषा में, आयुर्वेद रोग के बजाय, रोग के कारणों की चिकित्सा करता है। यद्यपि रोग के जीर्ण अवस्था में होने पर पहले रोग की फिर रोग के कारणों की चिकित्सा की जाती है।
इस बात को एक उदाहरण से अधिक स्पष्ट समझा जा सकता है। मान लीजिये, किसी क्षेत्र में कोई विषैला पौधा उग आया है और आसपास के पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है, यदि उसकी शाखाएँ और पत्ते काट दिये जाएँ तो उसके हानिकारक प्रभाव समाप्त हो जाएंगे।
परंतु, उसकी जड़ें पृथ्वी पर शेष रहने के कारण कुछ समय बाद वह पुनः पौधे का रूप लेकर, वातावरण प्रदूषित करेगा। लेकिन उसकी जड़ें उखाड़ कर, उसे समूल नष्ट कर देने से उस पौधे के पुनः उत्पन्न होने की संभावना समाप्त हो जाती है।
इसी प्रकार, यदि किसी व्यक्ति को कुष्ठ रोग हुआ है तो स्पष्ट है कि उस रोगी कि प्रतिरक्षा शक्ति उस रोग के संक्रमण से शरीर की रक्षा कर पाने में असफल रही है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे- कीटाणुओं का संक्रमण, पाचनतंत्र की खराबी, दूषित खान-पान, धातुओं की दुष्टि आदि। अब यदि रोगी की चिकित्सा का उद्देश्य केवल रोग के कीटाणुओं को ही नष्ट करना मान लिया जाए तो रोग का संक्रमण पुनः होने की संभावना बनी रहेगी।
चूंकि आयुर्वेद चिकित्सा(Ayurvedic Chikitsa Tips in Hindi) का सिद्धान्त रोग के किटाणुओं को नष्ट करने के साथ साथ शरीर की जीवनीय शक्ति या प्रतिरक्षा शक्ति को भी सुदृढ़ बनाना तथा शरीर में आवश्यक तत्वों की कमी को भी दूर करने की शिक्षा देता है, इसलिए, न तो रोग के पुनः उत्पन्न होने की संभावना समाप्त हो जाती है, बल्कि अन्य रोगों की उत्पत्ति भी नहीं हो पाती। इसलिए स्पष्ट है कि आयुर्वेद चिकित्सा ही सर्वश्रेष्ठ, सच्ची एवं आदर्श चिकित्सा है।
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लेखक: आलोक वाजपेयी, एमए (अँग्रेजी एवं मनोविज्ञान)
लेखक गत 20 वर्षों से विभिन्न सामाजिक, ऐतिहासिक, स्वास्थ्य संबंधी विषयों पर लेख लिखते आ रहे हैं।
मैं घोषणा करता हूँ कि मेरे द्वारा भेजी जा रही सामग्री मौलिक है और मैंने सभी तथ्यों को ठीक से जांच परख लिया है। आलोक वाजपेयी
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